What Is Lee commission - ली आयोग क्या हैं?

ब्रिटिश (British) भारत में 'ली आयोग बनाया गया था। 'ली' का पूरा नाम 'लार्ड विस्कांउट ली' (Lord wiskout lee) था। यह आयोग लोक सेवाओं में सुधार हेंतु बनाया गया था। सबसे पहले 1765 में 'लोक सेवक' शब्द का प्रयोग ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया था। East India Company को शासन करने में Public Servants की भूमिका व महत्व को समझ थी। इसके महत्व को देखते हुए 1769 में 'इंडियन सिविल सर्विस' (Indian Civil Service) को अस्तित्व में लाया गया था। 1864 में पहली बार एक भारतीय सत्येंद्र नाथ ठाकुर (जो रविन्द्र नाथ टैगोर के बड़े भाई थे) आई॰ सी॰ एस॰ ऑफिसर बने थे। इस पद के कार्य और अधिकार को देखते हुए, 1885 में कांग्रेेस ने अपने पहले अधिवेशन में ही मांग रखी कि 'लोक सेवा' का भारतीयकरण किया जाना चाहिए। तब उस समय के वायसराय लॉर्ड डफरिन (Viceroy Lord Dufferin) ने भारतीयों की मांग पर विचार करने के लिए सर चार्ल्स एचिसन (Sir Charles Aitchison) की अध्यक्षता में 'एचिसन आयोग' (Aitchison Commission) का गठन किया था। यह 'एचिसन आयोग' 1886 में गठित हुआ था और इस आयोग की रिपोर्ट 1887 में आया। इस आयोग ने कई और सेवाओं को लाने का काम किया। जैसे- आई॰ सी॰ एस॰, आई॰ एफ॰ एस॰, IPS आदि। ये सेवाएँ 1887 से पहले भी अस्तित्व में थी। लेकिन उस समय का स्वरूप अधिक ब्रिटिश शासन की ओर झुका हुआ था। उसी बिगड़े स्वरूप को भारतीयकरण करने की मांग कांग्रेस ने की थी। इसमें आगे की अधिनियमों में और आयोगों द्वारा सुधार किया जाता रहा। इसी क्रम में लोक सेवा को और भारतीयकरण बनाने के लिए 1912 में 'इंस्लिगटन शाही आयोग' (Insligton Royal Commission) भी बना था। इस आयोग की रिपोर्ट भी कुछ सुधारों के साथ 1915 में प्रस्तुत हुआ और 1917 में यह रिपोर्ट प्रकाशित भी हो गया था। लोक सेवा को अस्तित्व में लाने वाला Lord Cornwallis (1786-1793) थे। इसलिए लार्ड कार्नवालिस को लोक सेवाओं का जनक भी कहा जाता हैं। उसी काल से लोक सेवाओं के स्वरूप, कार्य और अधिकारों में कई अधिनियमों और आयोगों द्वारा आगे भी सुधार होते रहा। इसी परिप्रेक्ष्य में 'ली आयोग' भी बनाया गया था।


ली आयोग (Lee Commission)- यह ली आयोग लार्ड विस्कांउट ली की अध्यक्षता में 1923 में बनायी गयी थी। इसलिए इस आयोग को 'ली आयोग' के नाम से जाना गया। यह एक शाही आयोग (Royal commission) थी। इसकी रिपोर्ट 1924 में प्रस्तुत कर दी गयी थी। 'ली आयोग' द्वारा 1924 में प्रस्तुत अनुशंसाएँ निम्न लिखित रुप में देखा जा सकता है:-

(I) भारतीय सिविल सेवा, भारतीय पुलिस, भारतीय चिकित्सा सेवा, भारतीय इंजीनियरिंग सेवा, (इसमें सिंचाई सेवा शामिल थी), भारतीय वन सेवा (मुंबई प्रान्त छोड़कर) को बनाए रखना चाहिए। (ये सेवाएँ एचिसन आयोग में भी थी। इसीलिए उसे बनाए रखने की अनुशंसा की थी।) इन सेवाओं के सदस्यों की नियुक्ति तथा उन पर नियंत्रण रखने का कार्य भारत के राज्य सचिव द्वारा किया जाना चाहिए।

(II) अखिल भारतीय स्तर की अन्य सेवाओं, जैसे- भारतीय कृषि सेवा, भारतीय वेटनेरी सेवा, भारतीय शिक्षा सेवा, भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (सड़क एवं भवन शाखा) तथा भारतीय वन सेवा (केवल मुंबई प्रान्त में) के लिए आगे कोई नियुक्ति या भर्ती नहीं की जानी चाहिए। भविष्य में इन सेवाओं के सदस्यों की नियुक्ति और नियंत्रण रखने का कार्य प्रान्तीय सरकारों द्वारा किया जाना चाहिए।

(III) सेवाओं के भारतीयकरण के लिए उच्च पदों में से 20% पद प्रांतीय सिविल सेवा में से पदोन्नति के आधार पर भरे जाने चाहिए। सीधी भर्ती के समय अंग्रेजों और भारतीयों का अनुपात बराबर होना चाहिए। ताकि लगभग 15 वर्षों में 50-50 का अनुपात हासिल हो सके।

(IV) ऐसे ब्रिटिश अधिकारियों को समानुपातिक पेंशन के आधार पर सेवानिवृत्त की अनुमति दी जानी चाहिए जो भारतीय मंत्रियों के अधीन कार्य करने के इच्छुक न हो।

(V) भारत सरकार अधिनियम, 1919 के प्रावधानों के अनुसार 'लोक सेवा आयोग' का गठन किया जाना चाहिए।

     'ली आयोग' की उक्त पांँच अनुशंसाओं को स्वीकार करते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें लागू करते हुए 1926 में 'केन्द्रीय लोक सेवा आयोग' की स्थापना की और आयोग को लोक सेवकों की भर्ती करने का कार्य सौंपा। इस आयोग में एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्यों का प्रावधान था और इसके पहले अध्यक्ष (First chairman) ब्रिटिश गृह लोक सेवा के वरिष्ठ सदस्य 'सर राॅस बार्कर' (Sir Ross Barker) थे। 1937 में जब 1935 का अधिनियम लागू हुआ, तो इस आयोग का स्थान 'संघीय लोक सेवा आयोग' ने ले लिया। जब आजाद भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ, तब संघीय लोक सेवा आयोग' का नाम बदलकर 'संघ लोक सेवा आयोग' कर दिया गया। जो अभी तक इसी नाम से भर्तियाँ हुआ करती हैं। इसे हिन्दी में 'संघ लोक सेवा आयोग' तथा अंग्रेजी में Union Public Service Commission कहा जाता हैं। इसे संक्षेप में UPSC कहा जाता हैं।

     भारत सरकार अधिनियम, 1935 में लोक सेवा के सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों की रक्षा संबंधी प्रावधान भी किया गया था। इस अधिनियम में संघीय लोक सेवा आयोग तथा प्रांतीय लोक सेवा आयोग की स्थापना के साथ-साथ दो या दो से अधिक प्रान्तों के लिए संयुक्त लोक सेवा आयोग स्थापित करने का भी प्रावधान था।

     भारतीय उच्च श्रेणी का लोक सेवा, संघीय लोक सेवा आयोग का जो स्वरूप हम देख पाते हैं। उसकी स्थापना 1 अक्टूबर, 1926 को 'ली आयोग' की अनुशंसा पर ही हुई थी। लेकिन वर्तमान स्वरूप 26 जनवरी,1950 के आधार पर खड़ा हैं। जिसे 'संघ लोक सेवा आयोग' के नाम से जाना जाता हैं। अर्थात् वर्तमान संघ लोक सेवा आयोग, 'ली आयोग' की देन हैं। लेकिन 'लोक सेवा' का जनक लार्ड कार्नवालिस को माना जाता है।

26 जनवरी, 1950 को नये संविधान लागू होने के साथ ही 'संघ लोक सेवा आयोग' को एक स्वायत्त संस्था के रूप में संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया हैं। भारतीय संविधान के भाग-14 में अनुच्छेद, 315 से 323 तक में आयोग के गठन, कार्य एवं शक्ति का वर्णन हैं।

 

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