Concept Of Sovereignty And Its Development - सम्प्रभुता की अवधारणा एवं उसका विकास

विषय प्रवेश - 

सम्प्रभुता राष्ट्रीय जीवन में शासन करने की एक सर्वोच्च शक्ति है, जो अदृश्य, अकाट्य, अविभाज्य और न ही आकार रूप लेन-देन करनेे वाली एक सर्वोच्च शक्ति हैैं। यह सर्वोच्च शासन व्यवस्था में निवास करती हैं। किसी भी राज्य (राष्ट्र) को राज्य कहलाने के लिए चार आवश्यक तत्वों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण 'सम्प्रभुता' हैं। आमतौर पर हम यह कह सकते हैं कि सम्प्रभुता सम्पन्न जो राज्य होता है, वह स्वतंत्र राज्य होता है और जिस राज्य के पास सम्प्रभुता नहींं हैं, वह पराधीन या गुुलाम राज्य होता है। जैसे- भारत 15 अगस्त, 1947 के पहलेे सम्प्रभु राज्य (राष्ट्र) नहीं था। इसलिए भारत गुलाम राष्ट्रों की श्रेेणी में था। ऐसे और कई राज्य थे। स्वतंत्रता केेे लिए दुनिया में जो लड़ाइयां लड़ी गई । वह सम्प्रभुता के लिए ही लड़ी गई। जो राज्य सम्प्रभु सम्पन्न राज्य होता हैं, वह स्वतंत्र राज्य होता हैं। सम्प्रभु सम्पन्न राज्य सर्वोच्च एवंं बाह्य दृष्टि सेेे स्वतंत्र हो जाता है। इससे सरकार को कानूनों एवं आदेशों से संबंधित सभी प्रकार के अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। लोग स्वभावतः उसका पालन करने लगते हैं। कारण यह है कि इसके द्वारा राज्य के निवासियों में एकता की भावना का प्रादुर्भाव होता हैं, क्योंकि वे सब निवासी एक ही सर्वोच्च शक्ति की अधीनता में रहकर एकता का अनुभव करते हैं। इस संबंध में जेलिनेक ने कहा कि "सम्प्रभुता राज्य की वह विशेषता है, जिसके आधार पर उसकी अपनी इच्छा के अतिरिक्त कोई अन्य शक्ति सीमित नहीं कर सकती।" इस संबंध में आगे ऑस्टिन ने कहा कि "यदि किसी समाज का अधिकांश लोग एक निश्चित प्रधान व्यक्ति की आज्ञा का साधारणतः पालन करता है और उस निश्चित प्रधान व्यक्ति को साधारणतः किसी अन्य प्रधान की आज्ञा नहीं माननी पड़ती है तो उस समाज में वह निश्चित व्यक्ति 'सम्प्रभु' होता है तथा वह समाज स्वतंत्र राज्य होता हैं।"


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विकास -


सम्प्रभुता शब्द की व्याख्या और विकास की कहानी लम्बी हैं। राज्य की सर्वोच्च सत्ता को लेकर एक बहुत लम्बा विवाद हैं। यह विवाद 11वीं सदी में संघर्ष अपनी चरम सीमा पर पहुंँच गया था तथा पोप ग्रेगरी सप्तम और हेनरी अष्टम के बीच खूब विवाद रहा 14वीं शताब्दी में 'आधुनिक राज्य' के सिद्धांत की नींव पड़ी राजनीतिशास्त्र के प्रसिद्ध विचारक मैकियावेली नेे राज्य के सर्वोच्च सत्ता के सिद्धांत की स्थापना की। उनका तर्क था कि राज्य की शक्ति सर्वोच्च है और चर्च सहित सभी अन्य संघ राज्य केेेेेेे अधीन हैं। लेकिन मैकियावेली ने 'सम्प्रभुता' शब्द का उपयोग नहीं किया था। मैकियावेली के उत्तराधिकार बोदाँ नेे अपनी पुस्तक Six Books Concerning Republic में सम्प्रभुता सिद्धांत की पहली बार व्याख्या की, परंतु उसने राज्य कि शक्ति पर कुछ नियंत्रण स्वीकार किए। उस समय तक राज्य कि शक्ति सर्वोच्च व निरंकुश रूप में स्वीकार नहीं कि गई थी। सही मायने में और स्पष्ट शब्दों में अपनेेे प्राकृतिक अवस्था के राजा के लिए थॉमस हॉब्स ने राज्य के निरंकुश शक्ति की स्थापना की थी। इस बात को हॉब्स ने अपनी पुस्तक 'लेेेवियाथन' में प्रतिपादित किया कि "राजा सर्वोपरि है और उसकी इच्छा ही कानून हैं। "समझौतावादी हॉब्स के बाद समझौतावादी विचारक जाॅन लाॅक, जैक जीन रूसो के साथ-साथ माॅण्टेस्क्यू ने भी 'सम्प्रभुता' के सिद्धांत का विकास किया। लेकिन सम्प्रभुता को कानूनी आवरण पहनाने का श्रेय ब्रिटिश प्रसिद्ध न्यायशास्त्री ऑस्टिन को जाता हैं। उधर समकालीन दुनिया में सम्प्रभुता की यही धारणा मान्य है और राज्य को इस रूप में सम्प्रभु माना जाता हैं। 

सम्प्रभुता का रूप -


सम्प्रभुता राज्य की सर्वोच्च शक्ति का घोतक हैं। परंतु इसके अलग-अलग रूप हैं। प्रकार नहीं, रूप कहना ही उचित है। क्योंकि सम्प्रभुता एक भाव हैं, इसके कई प्रकार नहीं होते। सम्प्रभुता के व्यवहारिक संचालन की प्रक्रिया मेंं इसके कई रूप उभर कर सामने आते हैं। जैसे- नाममात्र की सम्प्रभुता, वास्तविक सम्प्रभुता, वैधानिक सम्प्रभुता, राजनीतिक सम्प्रभुता, विधिक सम्प्रभुता, अवैधानिक सम्प्रभुता (तख्ता पलट के समय प्रयोग में लायी जाती हैं।) और जन-सम्प्रभुता।

सम्प्रभुता का अर्थ एवं परिभाषा - 

शाब्दिक दृष्टि से 'Sovereignty' शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'Super Anus' नाम के शब्द से हुई हैं। लैटिन भाषा में इसका अर्थ होता है सर्वोच्च (Supreme) जिसका अर्थ हैं, सम्प्रभु होने के नाते राज्य को अपने निवासियों के आज्ञापालन सुनिश्चित करने का अधिकार। अर्थात् राज्य के सर्वोच्च सत्ता के समक्ष कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता। अवज्ञा की स्थिति में राज्य को दंडित करने का अधिकार हैं। इसे आंतरिक सम्प्रभुता कहा जाता हैं। राज्य की सीमा के भीतर विद्यमान प्रत्येक लोग और समुदाय राज्य की इच्छा का पालन करने को बाध्य होते हैं। यह इच्छा राज्य के विधियों के रूप में प्रकट होती हैं। राज्य की शक्ति मौलिक, सर्वव्यापी और असीमित हैं। यह बाहरी आयाम भी हैं। यह शक्ति बाहरी प्रभाव को स्वीकार नहीं करता हैं। सम्प्रभु राज्य अपनी विदेश-नीति का निर्माण बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के करता हैं। क्योंकि सम्प्रभु राज्य स्वयं सर्वोच्च और स्वतंत्र हैं। अर्थात् सम्प्रभु राज्य किसी दूसरे सम्प्रभु राज्य के बिना किसी प्रभाव व दबाव के अपनी आंतरिक (गृह) और बाहरी (विदेश नीति) नीतियों व कानूनों का निर्माण स्वतंत्रतापूर्वक कर सकता हैं।

   इस प्रकार सम्प्रभु राज्य किसी दूसरे सम्प्रभु राज्य के अधीन नहीं होता हैं और न ही किसी की आज्ञापालन को बाध्य होता हैं। राज्य की इसी क्षमता को सम्प्रभुता कहा जाता हैं। इसी संबंध में- "प्रत्येक स्वतंत्र राज्य में कई व्यक्ति, सभा या समूह होता हैं। जिसके पास कानूनी संदर्भ में अपनी इच्छा को व्यक्त करने तथा उस इच्छा को लागू करने का अर्थात् आदेश देने और अपनी सत्ता के प्रति आज्ञापालन सुनिश्चित करने की शक्ति होती हैं। शेष सभी इच्छाएंँ इसके अधीन हैं। एक बार व्यक्त होने पर राज्य की इच्छा अंतिम आदेश का प्रतिनिधित्व करता।"- जे॰ डब्ल्यू॰ गार्नरः पॉलिटिकल साइंस एंड गवर्नमेंट, पृष्ठ-156.

   अंतरराष्ट्रीय संबंध के संदर्भ में- अपने शाब्दिक अर्थों में सम्प्रभुता का आशय सर्वोच्च सत्ता से हैं, फिर भी वर्तमान स्थितियों में इसे निश्चिततः सीमित करना चाहिए। यह परम एवं अविभाज्य हैं, फिर भी इसे नियंत्रित एवं विभाजित होना चाहिए। यह अंतरराष्ट्रीय कानून से संगत नहीं रखती, फिर भी इसे अंतरराष्ट्रीय कानून के साथ संगत बनाना चाहिए।" पामर एवं परकिन्सः इंटरनेशनल रिलेशन्स, पृष्ठ-29

परिभाषा -

सम्प्रभुता कि परिभाषा कई विद्वानों ने अपने अपने ढंग से दी हैैं। यहां हम कुछ विद्वानों द्वारा दी गई प्रमुख परिभाषा को देखेंगे -

बोदाँ (Bodin) -

"सम्प्रभुता नागरिकों तथा प्रजा-जनों के ऊपर परमशक्ति है जो विधि द्वारा नियंत्रित नहीं हैं।" 
"Sovereignty is the supreme political power over citizens and subjects unrestrained by law."

बर्गेस (Burgess) -

"सम्प्रभुता व्यक्तियों तथा व्यक्ति-समूहों के ऊपर मौलिक, निरंकुश तथा असीम शक्ति हैं। 
"Sovereignty is the original, absolute and unlimited power over individual subject and association of subject."

ब्लैकस्टोन (Blackstone) -

"सम्प्रभुता वह सर्वोच्च अनिवार्य और अनियंत्रित सत्ता है जिसके आश्रय में बड़े-बड़े कानून होते हैं।" 
"it's the supreme, irresponsible, absolute, uncontrolled authority in which the  Jura summre imperl resides."

जेलिनेक (Jellinek) -

"सम्प्रभुता राज्य का वह गुना है जिसके द्वारा राज्य अपनी इच्छा तथा शक्ति के अतिरिक्त और किसी कानून से सीमित नहीं हैं।" 
"It is that characteristics of the state by virtue of which it cannot be legally bound except it's own will or limited by any other power than itself."

ऑस्टिन (Austin) -

"यदि किसी समाज का अधिकतर भाग एक निश्चित प्रधान व्यक्ति की आज्ञा का साधारणतः पालन करता है, उस निश्चित प्रधान व्यक्ति को साधारणतः किसी अन्य प्रधान की आज्ञा नहीं माननी पड़ती, तो उस समाज में वह निश्चित व्यक्ति सम्प्रभु होता है तथा वह समाज (उस प्रधान सहित) स्वतंत्र राज्य होता हैं।"
"If a determinant human Superior, not in the habit of obedience to like Superior, receives habitual obedience from the bulk of a given society, that determinant Superior is sovereign in that society and the society including the Superior is a society political and independent."

सम्प्रभुता और वर्तमान वैश्वीकरण की चुनौतियाँ (Sovereignty challenges of presen Globalisation) -


   आज आधुनिक विश्व को ग्लोबल गांँव (Global village) कहा जा रहा हैं। वैश्वीकरण का अर्थ है विश्व के विभिन्न भागों के निवासियों के बीच अधिकाधिक अंतः क्रिया। अर्थात् Open to all. इस अंतः क्रिया की प्रक्रिया ने राज्य की सम्प्रभुता के बीच एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत की हैं। राज्य की सम्प्रभुता का आज यह अर्थ नहीं दिखता है कि राज्य मनमर्जी से कुछ भी कर सकता हैं। राज्य वैधानिक दृष्टि से सर्वोच्च रहा हैं। जबकि व्यवहारिक दृष्टि से राज्य पर कई रूपों में प्रतिबंध रहे हैं बोदाँ और हाॅब्स जैसे विद्वानों ने भी सम्प्रभुता पर व्यवहारिक प्रतिबंध माना है, जबकि इन विद्वानों के काल में वैश्वीकरण जैसा कोई चीज नहीं था।

    इस परिप्रेक्ष्य में डेविड हेल्ड ने अपनी पुस्तक 'Political Theory Today' (1986) में वैश्वीकरण के युग में सम्प्रभुता के संबंध में कुछ मुख्य बिंदुओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया हैं -


  • ग्लोबल संबंध में वृद्धि के साथ ही सरकारों के उपलब्ध माध्यम क्रमशः कम होते गये हैं। जैसे सीमा प्रतिबंध धीरे-धीरे कम होते गये और साथ-ही-साथ वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति बढ़ती गई हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य के 'नियंत्रणकारी उपायों' (Controlling Measures) में कमी आई हैं।

  • सम्प्रभु राज्य की इस भूमिका में आने वाले दिनों में और कमी आएगी। क्योंकि जैसे-जैसे और सम्पर्क बढ़ेगा, राज्य के लिए अपने नागरिकों पर प्रभाव कायम करना और कठिन होता जाएगा। उदाहरण के तौर पर अगर समझा जाए तो सीमा पर से पूँजी का आगमन मुद्रास्फीति पर रोक के कोशिश, विनिमय दर और अन्य सरकारी नीतियों को प्रभावित कर सकता हैं।

  • ग्लोबल राज्य व्यवस्था में राज्य के अधीन तमाम परंपरागत कार्य जैसे- प्रतिरक्षा, संचार आदि के क्षेत्रों में भी राज्यों को एक-दूसरे से सहयोग की आवश्यकता होगी।

  • राज्यों  को एक-दूसरे के निकट संपर्क में रहना होगा, जिससे कि वे वैश्वीकरण के दुष्प्रभाव से अपने को बचा सकें।

आज के संदर्भ में, अनेक संगठनों और संस्थाओं के उदय हो जाने के कारण 'वैश्विक शासन' (Global Governance) की नींव पहले से ही रखी जा चुकी हैं।

   उपर्युक्त अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि एक अवधारणा के रूप में यही सही है कि राज्य सम्प्रभु हैं, परंतु बदली हुई परिस्थितियों में राज्य को सम्प्रभुता के बिंदु पर अनेक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा हैं।

इस के संदर्भ में- 👇

जॉन ऑस्टिन का सम्प्रभुता सिद्धांत




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