What Is Post-Behaviourlism - उत्तर-व्यवहारवाद क्या हैं?

1945 अर्थात् द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में व्यवहारवाद एक क्रांति के रूप में आया और राजनीति विज्ञान की प्रकृति, विषय-क्षेत्र एवं अध्ययन के दृष्टिकोण को व्यापक रूप से प्रभावित किया। व्यवहारवादी क्रांति ने राजनीति विज्ञान को कुछ हद तक प्रासंगिक भी बनाया, लेकिन व्यवहारवादी क्रांति ने कुछ अहितकारी एवं अनुपयोगी भूमिका भी निभाई, जो राजनीति विज्ञान के विकास के लिए अनुपयुक्त थी। व्यवहारवाद की उन सीमाओं को दूर करने तथा राजनीति विज्ञान को उपयोगी एवं प्रासंगिक बनाने के लिए ही 1960 के दशक में उत्तर-व्यवहारवाद आया।

  उत्तर-व्यवहारवाद, व्यवहारवाद के विरोध में न आकर सुधार के लिए एक नई चुनौती बनकर आया। उत्तर-व्यवहारवाद अध्ययन के परंपरागत दृष्टिकोण को पूर्णतः अस्वीकार नहीं करता और न ही व्यवहारवादी दृष्टिकोण को पूर्णतः स्वीकार करता है। यह तो परंपरागत और व्यवहारवादी दृष्टिकोण के उन तमाम उपयोगी पहलुओं को राजनीति विज्ञान में समाहित करता करना चाहता है, जिनसे राजनीति विज्ञान का विकास हो, राजनीति विज्ञान उपयोगी व प्रासंगिक बन सके और राजनीतिक समस्याओं का उचित एवं लाभकारी निदान हो सके। राजनीतिक विज्ञान को प्रासंगिक बनाने के लिए उत्तर-व्यवहारवाद तथ्य एवं मूल्य (Fact and Value) के उलझन मे न पढ़कर दोनों को आवश्यकतानुसाार महत्व देता है। यह राजनीति विज्ञान को समाज का तत्कालीन समस्याओं एवं संकटों के अध्ययन से सम्बद्ध करता हैं। उत्तर-व्यवहारवाद न केवल विकसित देशों की राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन करता है, बल्कि यह तृतीय विश्व के देशोंं की समस्याओं का भी अध्ययन करता है। उत्तर-व्यवहारवाद चाहता है कि राजनीतिक सिद्धांत के दार्शनिक एवं अनुुभववादी पक्षों में समन्वय स्थापित किया जाए।

  उत्तर-व्यवहारवाद के उद्घोषक के रूप में  David Easton जाने जाते हैं। जबकि David Easton ने व्यवहारवादी आंदोलन की अगुवाई की थी और बाद में व्यवहारवदी शोधों से प्राप्त: परिणामों के प्रति असंतोष व्यक्त किया 1965 ई० में अमेरिका राजनीति विज्ञान संगठन (American Political Science Association) के  वार्षिक सम्मेलन केे अध्यक्षीय भाषण में David Easton ने "प्रासंगिकता एवंं सक्रियता की लड़ाई के नारे" कहकर   उत्तर-व्यवहारवाद की पूरी वकालत की Easton ने परम्परागत दृष्टिकोण के प्रति व्यवहारवादी आंदोलन को विद्रोही आंदोलन कहा, जबकि उत्तर-व्यवहारवाद को व्यवहारवाद केे सहयोगी एवं सुधारात्मक आंदोलन की संज्ञा दी। इस प्रकार Plato की तरह Easton भी स्वयं द्वारा समर्थित विचार में परिवर्तन कर डाला।

  उत्तर-व्यवहारवाद को पूर्णरूप से स्पष्ट करने के लिए David Easton द्वारा बताए गए उत्तर-व्यवहारवाद की विशेषताओं की व्याख्या जरूरी प्रतीत होता है, जिसे हम निम्नलिखित ढंग से देख सकते हैं -


  • प्रविधि के पूर्व सार-विषय -

राजनीति विज्ञान के तहत संपन्न होने वाले शोध में तकनीक से पहले तथ्य (Substance) को स्थान मिलना चाहिए। यही सही है कि अनुसंधान के लिए परिष्कृत उपकरणों का होना अच्छा है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि किस उद्देश्य के लिए इन उपकरणों का प्रयोग किया जा रहा है। जब तक वैज्ञानिक शोध समकालीन महत्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं के लिए संगत एवं सार्थक नहीं होगा, तब तक वह व्यर्थ एवं अनुपयोगी होगा। व्यवहारवादी यह कहा करते थे कि "अस्पष्ट होने से गलत होना अच्छा है" (Better to be wrong then vague), इसके जवााब में उत्तर-व्यवहारवादियों का कहना है कि "असंगत रूप से निश्चित होने की अपेक्षा अस्पष्ट होना कहींं अधिक श्रेयस्कर हैं।" (Better to be vague than non-relevently).

  • सामाजिक परिवर्तन पर बल -

राजनीति विज्ञान का प्रमुख आग्रह हैै कि सामाजिक परीक्षण नहीं होना चाहिए, ताकि समसामयिक राजनीति विज्ञान प्रासंगिक व उपयोगी बन सके।

  • समस्याओं के विश्वसनीय  निदान -

व्यवहारवाद अमूर्त अवधारणाओं और विकल्पोंं के साथ जुड़ गया था, लेकिन उत्तर-व्यवहारवाद समाज की समकालीन समस्याओं से आंँख नहीं मूंँद लेेेना चाहता। उत्तर-व्यवहारवाद इन समस्याओं से जूझना चाहता है। इन समस्याओं का उचित निदान चाहता है, ताकि राजनीतिक आधुनिकीकरण हो।

  • मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका -

व्यवहारवादियों ने मूल्यों के महत्व को हमेशा अस्वीकार न करते हुए भी विज्ञानवाद और मूल्य-निरपेक्षतावादी दृष्टिकोण पर इतना जोर दिया कि व्यवहारिक दृष्टि से मूल्यों को महत्वहीन मान लिया गया था। इस स्थिति ने राजनीतिक सिद्धांत को  प्रयोजनहीन बना दिया। इसके विपरीत, उत्तर-व्यवहारवादियों ने मूल्यों की निर्णायक भूमिका को स्वीकार किया है। वे इस बात पर बल देते हैं कि यदि ज्ञान को सही प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाना है, तो मूल्यों को उनकी केंद्रीय स्थिति प्रदान करनी होगी।

  • बुद्धिजीवियों की भूमिका -

उत्तर-व्यवहारवादियों ने राजनीतिक वैज्ञानिकों को यह भी याद दिलाना चाहा है कि बुद्धिजीवी होने के नाते समाज में उनकी अपनी एक भूमिका हैं – "बड़े कार्यों को पूरा करने की जिम्मेवारी।" सभ्यता के मानवीय मूल्यों के संरक्षण में अधिक-से-अधिक प्रयत्नशील होना उनका प्रमुख उत्तरदायित्व है। राजनीतिक वैज्ञानिक यदि अपने को सामाजिक समस्याओं से अलग रखेंगे, तो वे केवल ऐसे तकनीकविद और यंत्रवादी बनकर रह जाएंगे जो समाज के साथ खिलवाड़ में लगे हुए हैं।

  • कर्मनिष्ठ विज्ञान -

उत्तर-व्यवहारवादि कर्मनिष्ठता पर बल देते हैं और उनका कहना है कि राजनीतिक विषयों के अध्ययनकर्त्ता को समाज के पूर्णनिर्माण में कार्यरत होना आवश्यक है। उत्तर-व्यवहारवादियों की मांग है कि चिन्तनोन्मुख ज्ञान के स्थान पर क्रियाशील ज्ञान होना चाहिए और उनका आग्रह है कि राजनीतिक विज्ञान का समस्त अनुसंधान प्रतिबद्धता और क्रियाशीलता की भावनाओं से प्रेरित और प्रभावित होना चाहिए। इस प्रकार Eston राजनीति विज्ञान को विश्व एवं समाज के प्रति उत्तरदायी बना देता हैं।

  • व्यवसाय का राजनीतिकरण -

एक बार यह मान लेने के बाद कि समाज में बुद्धिजीवियोंं की महत्वपूर्ण एवं निर्णायक भूमिका होती है और यह भूमिका समाज के लिए भी आवश्यक है। इस निष्कर्ष पर पहुंँचना अनिवार्य हो जाता है की सभी प्रकार के कार्यों का राजनीतिकारण हो। राजनीतिशास्त्रियों की सभी संस्थाओं और विश्वविद्यालय का भी राजनीतिकरण अनिवार्य एवं वांछनीय हैं।

  इस प्रकार उत्तर-व्यवहारवाद राजनीति विज्ञान का व्यवसायिक, शैक्षणिक तथा मूल्यांकनात्मक स्वरुप बदल देना चाहता है, विश्व समस्याओं की ओर व्यवहारवादीयों का ध्यान आकर्षित कर उसे समाज एवं विश्व के प्रति उत्तरदायी बना देता है, इसलिए यह उम्मीद की जा सकती है कि उत्तर-व्यवहारवाद का युग निश्चित रूप से मानवीय मूल्यों का ध्यान रखेगा, क्योंकि वह हमें आदर्श निष्ठाओं की ओर ले जाने का संकल्प करता है। इस युग में न केवल अध्ययन एवं अध्यापन की पद्धति विज्ञानात्मक होगी बल्कि पूर्व-व्यवहारवादी दोषों की भी समाप्ति होगी, चुकी 1970 ई० के बाद से ही व्यवहारवादी और उत्तर-व्यवहारवादी गतिरोध समाप्त हो गया है। इसलिए अब राजनीतिक विज्ञान का भविष्य उज्जवल दिखता हैं।

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

If you have any doubts, Please let me know