What Is Communism - साम्यवाद क्या हैं?

साम्यवाद का परिचय -

 "साम्यवाद एक ऐसा सिद्धांत है जिसके द्वारा निर्धनता, कष्ट और शोषण का अंत होगा तथा उसके द्वारा ऐसे समाज की स्थापना होगी जिनमें समानता, स्वतंत्रता और शांति विद्यमान होगी।"– साम्यवाद घोषणा

   साम्यवाद अंग्रेजी भाषा के शब्द 'Communism' का हिंदी अनुवाद है। जिसका अर्थ है- सम्पत्ति पर संयुक्त रूप से स्वामित्व रखना और मिलकर उपभोग करना। 1840 में फ्रांस में छपने वाली एक पत्रिका, जिसका नाम था। 'न्यू मोरल वर्ल्ड' में सबसे पहले 'कम्युनिस्ते' शब्द का प्रयोग किया गया था। इस शब्द का प्रयोग समाजवादी विचारक 'केबट' के अनुयायियों के लिए किया गया था। 1840 में मार्क्स तथा ऐैजिल्स द्वारा प्रकाशित 'कम्युनिस्ट' घोषणा-पत्र में इसका प्रयोग एक गुप्त समाज-कम्युनिस्ट लीग के कार्यक्रम के लिए किया गया था। मार्क्सस ने जान-बूझकर 'समाजवादी' शब्द के प्रयोग सेेे बचने के लिए 'कम्युनिस्ट' शब्द का प्रयोग 1848 मेंं किया था। क्योंकि मार्क्स के अनुसार समाजवादी शब्द कल्पना लोकवादी पद्धति था। इसमें आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए हवाई योजनाएंँ बनाई जा रही थी। उस दौरान समाजवाद पूंँजीपतियों द्वारा संचालित किए जाने वाला मध्यवर्गीय आंदोलन था मार्क्स नेेेेेे इस आंदोलन से अपने आंदोलन को अलग रखने के लिए इसे 'कम्युनिज्म' का नाम दिया था।

   साम्यवाद की व्याख्या करते हुए मार्क्स ने बताया कि साम्यवाद मानव-समाज के विकास की वह उत्कृष्टत्तम दशा है जब समाज में इस सिद्धांत को लागू करना संभव हो जाएगा कि प्रत्येक व्यक्ति से उसकी योग्यता के अनुसार काम लिया जाए और उसको उसकी आवश्यकता के अनुसार आवश्यक धन दिया जाए। 'साम्यवाद' क्या है? साम्यवाद पूंजीवाद के विरुद्ध एक क्रांति है। साम्यवाद समाज की वह व्यवस्था है जो वर्ग विहीन एवं राज्यहीन हो तथा उत्पादन के समस्त साधनों पर समाज का नियंत्रण हो। व्यक्तिगत लाभ के स्थान पर सामूहिक लाभ की भावना विद्यमान हो। साम्यवाद समाजवाद का वह उन्नतिशील रूप है, जिसमें व्यक्तिगत सम्पत्ति का प्रयोग शोषण के लिए ना होकर जन-कल्याण के लिए हो। यह एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यकता की वस्तुएंं उपलब्ध होगी तथा प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार काम करना पड़ेगा। इस प्रकार साम्यवाद सामाजिक विकास का अंतिम चरण हैं।


साम्यवाद का मूल सिद्धांत -

साम्यवादी दर्शन व्यक्तिवादी तथा आदर्शवादी दर्शनों की तरह उलझा हुआ नहीं है। साम्यवाद समाज का संगठित एवं वैज्ञानिक अध्ययन है। इसकेे मूूूूल सिद्धांतों के अंतर्गत देख सकते हैं।

  • साम्यवाद पूंजीवादी व्यवस्था का विरोधी हैं। साम्यवाद पूंजीवादी व्यवस्था के विनाश में विश्वास करता हैं। साम्यवादी पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त करके एक सर्वहारा वर्ग द्वारा निरंकुश शासन स्थापित करना चाहते हैं। पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त किए बिना साम्यवादी व्यवस्था स्थापित नहीं हो सकती है। जुलियर हेकर ने कहा है कि "पूँजीवाद मनुष्य की आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा तथा आत्माभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पूर्ति करने में सर्वदा अयोग्य है।"

  • साम्यवाद लोकतंत्र का विरोधी है। साम्यवादी लोग लोकतंत्र को पूंँजीपतियों के लिए पूंँजीपतियों की तथा पूंँजीपतियों द्वारा सरकार मानते हैं। साम्यवादियों का मानना है कि लोकतंत्र वर्ग-व्यवस्था को उत्साहित करता है। लोकतंत्र में उत्पादन के साधनों का प्रयोग सार्वजनिक कल्याण के बजाए बजाए व्यक्तिगत लाभ के लिए होता है। साम्यवादीयों के अनुसार लोकतंत्र का अर्थ है सट्टेबाजी, अवसरवादिता, अनैतिकता, असमान वितरण तथा साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का विकास। अतः साम्यवादी लोकतंत्र को अशक्तिशाली तथा घृणास्पद मानते हैं।

  • साम्यवाद धर्म में आस्था नहीं रखता हैं। क्योंकि साम्यवादियों का मानना है कि प्रगतिशील विचारों के मार्ग में धर्म बाधा डालता हैं। धर्म गरीबों को और अधिक गरीब और अमीरों को और अधिक अमीर होने का मार्ग दिखाया है। धर्म ने हमेशा से गरीब को भाग्यवादी का प्रमाण-पत्र देकर उसे निष्क्रिय दास बनाना सिखाया है। राज्य की भाँति धर्म ने वर्ग-व्यवस्था को और भी अधिक जटिल बना दिया हैं। धर्म ने मनुष्य को अंधविश्वासी बनाया। इसी संदर्भ में मार्क्स ने भाग्यवादी दर्शन को शरारतपूर्ण तथा धर्म को जनता के लिए अफीम बताया था। धर्म का नाम लेकर जनता का आर्थिक तथा राजनैतिक शोषण किया जाता है। अतः साम्यवाद धर्म में विश्वास नहीं करता हैं।

  • साम्यवादी इतिहास की व्याख्या आर्थिक आधार पर करते हैं। साम्यवाद का मानना है कि मनुष्य के जीवन में जितना मूल्य आर्थिक चीजों का है, उतना नैतिक, धार्मिक तथा अन्य किसी चीज का नहीं। इतिहास में आर्थिक समस्या एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी तत्व रहा हैं। साम्यवादियों का मानना है कि मनुष्य जाति की प्रगति व विकास विचारों द्वारा न होकर आर्थिक परिवर्तनों द्वारा होती है। इतिहासकार इतिहास को केवल राजा-महाराजाओं तथा योद्धाओं की क्रीड़ाओं का विवेचना मात्र समझते हैं। वे जब कमी किसी क्रांति व युद्ध का वर्णन करते हैं तो उसके आर्थिक पहलू को भूल जाते हैं। वे यह भी भूल जाते हैं कि सामाजिक परिवर्तन उत्पादन के साधनों के परिवर्तन के साथ चलते हैं। क्रांति, युद्ध और राजा-महाराजाओं के वर्णन करते समय आर्थिक पहलू का भी वर्णन होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता है। इसलिए साम्यवादी इतिहास की व्याख्या में आर्थिक पहलू की भी विवेचना करने में विश्वास करते हैं।

  • साम्यवादी वर्ग-संघर्ष में अपनी आस्था बनाएँ रखते हैं। वैसे भी साम्यवादी दर्शन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत वर्ग-संघर्ष हैं। साम्यवादी अपने वर्ग-संघर्ष में दो वर्ग बनाते हैं। एक पूंँजीपतियों का और दूसरा सर्वहारा यानी मजदूरों का जिनके पास धन का अभाव है। इन्हीं दोनों वर्गों में संघर्ष की बात की जाती हैं। क्योंकि पूंँजीवादी व्यवस्था में धन कुछ ही व्यक्तियों के हाथों में केंद्रित होता हैं। वे अपनी इस व्यक्तिगत पूँजी का प्रयोग सार्वजनिक लाभ के लिए न करके मजदूरों के शोषण के लिए करते हैं। साम्यवादियों के अनुसार यह वर्ग-संघर्ष साम्यवादी समाज में ही संभव है। ये वर्ग-संघर्ष आर्थिक समानता को स्थापित करने के लिए जरूरी माना जाता हैं।

  • साम्यवादी द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी प्रणाली में विश्वास करते हैं। वैसे भी इस प्रणाली का प्रयोग साम्यवादियों के द्वारा ही किया हुआ हैं। साम्यवादियों का मानना है कि समाज का विकास इस प्रणाली के अंतर्विरोध का परिणाम ही हैं। इस प्रणाली के अनुसार समाज का विकास सीधे न होकर टेढ़े-मेढ़े रूप में हुआ है। इस प्रणाली के मुख्यतः तीन अंग बताएँ गए हैं – वाद, 'प्रतिवाद' एवं संवाद (साम्यवाद)। इसमें 'वाद' को प्रारंभिक साम्यवाद 'प्रतिवाद' को औद्योगिक क्रांति के बाद यांत्रिक काल और 'संवाद' को साम्यवाद का काल माना गया हैं। अतः साम्यवादी लोग इस प्रणाली का प्रयोग समाज के प्रत्येक पहलू की व्याख्या करने के लिए करते हैं।

  • साम्यवादी विचारक अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत में विश्वास करते हैं। अतिरिक्त मूल्य है क्या? अतिरिक्त मूल्य वह मूल्य है जिसका फल मजदूरों व मेहनतकशों को नहीं मिलकर, मालिकों या पूँजीपतियों के जेब में सीधा चला जाता हैं। इस पद्धति को साम्यवादी उलट देना चाहते हैं। एक उदाहरण से समझा जा सकता है– किसी कंपनी का मालिक एक फोन को बनाने में 1500 रुपए खर्च करता है, जब वही मोबाइल बाजार में आता है तो वह 2500 ₹ में बिकता है, जबकि मालिक को कुल 1500 ₹ खर्च करने पड़े थे। इस प्रकार मालिक को 2500–1500=1000 ₹ का लाभ हुआ। 1000 ₹ के इस लाभ में से मालिक, मजदूरों को नहीं देता है। इस 1000 ₹ के अतिरिक्त मूल्य को मालिक स्वयं ही अपने पास रख लेता है। इस पूंजीवादी व्यवस्था को नष्ट कर देना चाहते हैं साम्यवादी। अतिरिक्त मूल्य में से मजदूरों को भी हिस्सेदारी चाहते हैं।

  • साम्यवादी सर्वहारा का अधिनायकत्व चाहते हैं। सर्वहारा के अधिनायकत्व के लिए मजदूरों (सर्वहारा) द्वारा संगठित पूँजीपतियों के खिलाफ हिंसा क्रांति भी की जा सकती है। बिना इस तरह की क्रांति के पूंजीवादी व्यवस्था समाप्त नहीं की जा सकती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी साम्यवादी पूंँजीवाद के समर्थक समर्थक मानते हैं। लेनिन ने कहा है कि पूंँजीवादी लोकतंत्र असत्य तथा शरारतपूर्ण है। यह धनिकों के लिए स्वर्ग तथा गरीबों के लिए इंद्रजाल हैं।

  • साम्यवादी राज्यहीन सत्ता में विश्वास करते हैं। साम्यवादी राजकीय सत्ता में विश्वास नहीं करते। क्योंकि इनके अनुसार राज्य शोषण का एक मंत्र है। जहांँ स्वतंत्रता है, वहांँ पर राज्य नहीं होता और जहांँ पर राज्य होता है वहां स्वतंत्रता नहीं होती। राज्य हमेशा शासक वर्ग के हाथों मजदूरों को कुचलने का एक यंत्र हैं। अतः साम्यवादी राज्यविहीन सत्ता में विश्वास करते हैं।

  • साम्यवादी अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी में विश्वास करते हैं।
साम्यवादी अन्तर्राष्ट्रीय विश्व के शोषित वर्ग को पूंँजीवादी वर्ग के शोषण से बचाने के लिए एक विश्वव्यापी आंदोलन हैं।  साम्यवादियों का मानने है कि मजदूरों का कोई राष्ट्र या घर नहीं होता। विश्व के मजदूरों के हित सामान्य है। इसलिए दुनिया के मजदूरों को एक हो जाना चाहिए। अगर दुनिया के मजदूर एक होकर क्रांति करेंगे तो मार्क्स के अनुसार शासक वर्ग हिलने लगेगा। इस क्रांति में तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है केवल अपनी बेड़ियाँ है और प्राप्त करने के लिए तुम्हारे पास एक विशाल संसार है। अतः मार्क्स ने नारा दिया– "दुनिया के मजदूरों एक हो।"


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